Friday, April 19, 2024
spot_img
spot_img
spot_img
03
20x12krishanhospitalrudrapur
previous arrow
next arrow
Shadow
spot_img
Homeबुद्धिजीवियों का कोनापुस्तक समीक्षा : बरेली की समृद्ध सांस्कृतिक चेतना का सुरम्य गुलदस्ता है...

पुस्तक समीक्षा : बरेली की समृद्ध सांस्कृतिक चेतना का सुरम्य गुलदस्ता है ‘ कलम बरेली की ‘

वरिष्ठ पत्रकार निर्भय सक्सेना द्वारा सम्पादित कृति ‘कलम बरेली की’ पढ़ने का सुअवसर मिला। यह कृति बरेली की समृद्ध, सांस्कृतिक विरासत का ऐतिहासिक दस्तावेज है। इसमें यहां की सांस्कृतिक चेतना पत्रकारिता, साहित्य, इतिहास तथा यहां की विकास यात्रा के विविध रंग बिखरे पड़े हैं। बरेली पर शोध करने वाले शोध छात्र-छात्राओं के लिए यह कृति इनसाइक्लोपीडिया सिद्ध होगी ऐसा मेरा मानना है।
निर्भय सक्सेना एक वरिष्ठ पत्रकार हैं। बरेली की पत्रकारिता की विकास यात्रा में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया है और इसकी स्पष्ट झलक हमें इस कृति में देखने को मिलती है। बरेली में पत्रकारिता के उद्भव और विकास का बड़ा सटीक एवं रोचक वर्णन करते हुए निर्भय सक्सेना लिखते हैं कि स्वतंत्रता से पहले यहां आम बोल-चाल की भाषा उर्दू ही थी। इसलिए यहां पत्रकारिता का उद्भव भी उर्दू भाषा के समाचार पत्र के रूप में हुआ। यहां से सन् 1872 में श्री सईद अहमद के सम्पादन में पहले उर्दू साप्ताहिक समाचार पत्र “रोजाना“ का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। इस पत्र का प्रकाशन लीथोग्राफी ग्राफी के जरिए होता था और यह फर्रासी टोला से प्रकाशित होता था। इस समाचार पत्र का मूल्य उस समय ‘एक आना’ था। सन् 1919 में इस समाचार पत्र के सम्पादक कलम के सिपाही बन गए। इसमें केवल खबरें ही छपती थीं।
बरेली में हिन्दी भाषा का पहला साप्ताहिक समाचार पत्र सन् 1933 में प्रकाशित हुआ। इस समाचार पत्र का नाम था-“प्रदीप“ और इसके सम्पादक थे पंडित राधेश्याम कथावाचक। सन् 1936 में बरेली का प्रथम हिन्दी दैनिक समाचार पत्र “दैनिक हिन्दी कांग्रेस“ था। इस समाचार पत्र के संपादक श्री चन्द्र प्रकाश थे। इसकी गणना राष्ट्रवादी, समाचार पत्रों में होती थी और इसमें रुहेलखण्ड क्षेत्र में आजादी की अलख जगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आजादी से पहले छपने वाले प्रमुख राष्ट्रवादी विचारधारा के पत्रों में “स्वराज्य“, “हलचल“, “कायस्थ समाचार“, “इंसाफ“, “नूरे बरेली“ आदि समाचार पत्र प्रमुख थे।
श्री सक्सेना लिखते हैं कि देश की स्वतंत्रता के बाद बरेली में समाचार पत्रों की एक बाढ़ सी आ गई। जन जागरण की इस नई लहर में प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र-“बरेली समाचार“, “बरेली गजट“, “युग संदेश“, “सत्यम्“, “बरेली एक्सप्रेस“, “पांचाल भूमि“, “जागो जवान“ आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। 17 जनवरी सन् 1969 को बरेली के प्रेमनगर से हिन्दी दैनिक समाचार पत्र “अमर उजाला“ का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। 11 फरवरी 1974 को दैनिक समाचार पत्र “विश्व मानव“ बरेली से छपना शुरू हुआ। 1989 में बरेली से दैनिक जागरण एवं दैनिक आज का भी प्रकाशन शुरू हो गया। इसके कुछ वर्षों बाद “दैनिक हिन्दुस्तान“ भी बरेली से प्रकाशित होने लगा। इन समाचार पत्रों का प्रकाशन निरन्तर जारी है। विगत कुछ वर्षों से दैनिक समाचार पत्र “अमृत विचार“ का प्रकाशन भी शुरू हुआ है। इस प्रकार बरेली पत्रकारिता के क्षेत्र में नित नए-नए आयाम गढ़ रहा है।
श्री निर्भय जी के अनुसार बरेली में पत्रकारिता का परचम फहराने वालों में पत्रकार जे.वी. सुमन, धर्मपाल गुप्ता शलभ, रामदयाल भार्गव, राकेश कोहरवाल, ज्ञान सागर वर्मा, दिनेश चन्द्र शर्मा ‘पवन’, कमल कान्त शर्मा, व्रजपाल सिंह बिसारिया, चन्द्रकान्त त्रिपाठी, गजेन्द्र त्रिपाठी, राजेश सिंह श्रीनेत, संजीव पालीवाल, अजीत सक्सेना, शम्भू दयाल बाजपेयी, अमित अवस्थी तथा संजीव गंभीर आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
इस कृति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उसके लेखक ने बहुत प्रमाणिकता के साथ पत्रकारिता एवं सांस्कृतिक चेतना से जुड़े अतीत की गौरवगाथा प्रस्तुत की है। लेखन ने अपनी कृति में अतीत के अत्यन्त दुर्लभ चित्रों एवं लेखों को मूल रूप में प्रकाशित किया है, जिससे अतीत की पत्रकारिता एवं सामाजिक चेतना की गौरवगाथा अधिक प्रमाणित एवं सजीव प्रतीत होती है। इतने लम्बे समय तक चित्रों एवं लेखों को संजोकर रखना और उसे मूलरूप में कृति में प्रकाशित करना निश्चित रूप से दुरुह एवं श्रमसाध्य कार्य है और इसके लिए कृति के लेखक निर्भय सक्सेना बधाई एवं साधुवाद के पात्र हैं।
कृति में कायस्थ समाज की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत एवं बरेली के विकास में कायस्थ समाज की प्रमुख विभूतियों द्वारा दिये गये सक्रिय योगदान की विवेचना भी बड़े रोचक एवं प्रभावी ढंग से की गई है। जिससे कृति की उपादेयता और बढ़ गई है। यह निर्विवाद सत्य है कि कायस्थ समाज हमारे देश का एक प्रबुद्ध वर्ग है और देश के विकास में उसकी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। प्रस्तुत कृति में बरेली के विकास एवं सामाजिक चेतना के विविध आयामों में कायस्थ समाज की विभिन्न विभूतियों द्वारा किए गये कार्यों की सराहना बड़े ही मुक्त कंठ से की गई है। लेखक के अनुसार इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जग मोहन लाल सिन्हा, स्वतंत्रता सेनानी शांति शरण विद्यार्थी, फतेहबहादुर सक्सेना, डाॅ. दिनेश जौहरी, निरंकार देव सेवक, के.पी. सक्सेना, किशन सरोज, पी.सी. आजाद, सावित्री श्याम, श्योराज बहादुर, डाॅ. अरुण कुमार सक्सेना, मुंशी प्रेम नारायण सक्सेना तथा सुरेन्द्र बीनू सिन्हा जैसी विभूतियों ने जीवन के विविध क्षेत्रों में कायस्थ समाज के गौरव को बढ़ाया है।
कृति में बरेली की गंगा जमुनी संस्कृति के विविध रंग बिखरे पड़े हैं। बरेली का अतीत साझा विरासत एवं साझा शहादत की एक नायाब मिसाल है। लेखक ने बरेली के सभी धर्मों के प्रमुख धार्मिक स्थलों यहां की रवायतों एवं परम्पराओं, आपसी मेल-मिलाप, भाई-चारे का वर्णन बड़ी रोचकता एवं प्रमाणिकता के साथ किया है।
निर्भय सक्सेना की यह कृति “कलम बरेली की“ यहां के समग्र अतीत का एक नायाब आइना है। इसे बरेली की समृद्ध सांस्कृतिक चेतना एवं विरासत का सुरम्य गुलदस्ता कहा जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। बरेली की सांस्कृतिक चेतना, पत्रकारिता के उद्भव एवं विकास की यात्रा, शैक्षिक परिदृश्य तथा सामाजिक पहलुओं का अध्ययन करना है तो इसके लिए यह कृति उनके लिए पथ प्रदर्शिका सिद्ध होगी। मुझे आशा ही नहीं पूरा विश्वास है कि निर्भय सक्सेना की यह कृति पाठकों द्वारा निश्चित रूप से सराही जायेगी। ऐसी अद्भुत कृति के सम्पादित करने के लिए निर्भय सक्सेना को बहुत-बहुत बधाई एवं साधुवाद।
सुरेश बाबू मिश्रा
साहित्य भूषण
निवास: ए-373/3, राजेन्द्र नगर, बरेली-243122 (उ॰प्र॰)
मोबाइल नं. 9411422735,
E-mail : sureshbabubareilly@gmail.com

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

CommentLuv badge

Most Popular

Recent Comments