एफएनएन, रामनगर (नेनीताल) । घने जंगल में जहां लोग जाने से डरते हैं, वहा गूजरों के खत्ते में 28 वर्षीय खुशबू नौनिहालों को शिक्षित करने में जुटी हैं। तीन वर्षो से ‘अपनी पाठशाला’ खोलकर निःशुल्क पढ़ा रही हैं। अपनी पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने गरीब बच्चों को पढ़ाने का संकल्प ले लिया था। आज शिक्षा के इस मंदिर में 50 बच्चे अपना जीवन उजियारा कर रहे हैं।
नौकरी छोड़ लिया मुफ्त शिक्षा देने का संकल्प
खुशबू ने उत्तराखंड टेक्निकल यूनिवर्सिटी से मैनेजमेंट का कोर्स करने के बाद एक निजी कंपनी में जाब की। नौकरी रास नहीं आई तो घर आ गईं। अच्छी-खासी जाब छोड़ने पर परिवार की नाराजगी झेलनी भी पड़ी। निजी स्कूल में इंग्लिश टीचर की जाब करते हुए सड़कों पर भीख मांगते बच्चों को देखा तो उन्हें फ्री शिक्षा देने के लिए 21 जून 2017 को कर्म दिशा मनोरथ ट्रस्ट नाम से स्वयंसेवी संस्था बनाई और इसे दिल्ली में रजिस्टर्ड भी करवा दिया।
पहला प्रयोग विफल लेकिन हिम्मत नहीं हारी
खुशबू बताती हैं कि रेलवे स्टेशन, पार्क, बस स्टेशन में भीख मागने वाले बच्चों को पढ़ाने का प्रयास किया लेकिन आर्थिक तंगी के चलते कोशिश परवान नहीं चढ़ पाई। खेमपुर गेबुवा (रामनगर) की पूर्व प्रधान भवानी बिष्ट ने हौसला बढ़ाया। बताया कि बैलपड़ाव से सात किमी दूर वन गूजरों का नूनियागंज खत्ता है। गांव का सर्वे करने पर 60 बच्चे अशिक्षित मिले। 15 दिन में बच्चों के लिए कुछ कापी-किताब, स्टेशनरी खरीदी। वन गूजरों से पाठशाला खोलने को झोपड़ी मांगी। इस तरह चल पड़ी सुदूर इलाके में गरीब बच्चों की मुफ्त पाठशाला। स्कूल में बच्चों की तादाद बढ़ी तो वन विभाग की अनुमति से बड़ी झोपड़ी बनाकर चार कक्षाएं चलाने लगीं। पाठशाला में दो अन्प शिक्षिकाओं पूजा गोस्वामी और रितु को रख लिया। दोनों बच्चों को गिनती सिखा रही हैं। खुशबू ने बताया कि बच्चों के लिए खेलकूद, कला और संगीत का प्लेटफार्म बनाने की कोशिश जारी है। इसके बाद अन्य क्षेत्रों में भी जरूरतमंद बच्चों तक शिक्षा का उजियारा फैलाने का प्रयास होगा। खुशबू पाठशाला तक स्कूटी से जाती हैं। जंगल का रास्ता होने से शुरुआत में डर जरूरत लगा मगर अब आदत पड़ गई है। जंगल भी अपने लगने लगे हैं। पाठशाला चलाने के लिए खुशबू अपने परिचितों, संस्थाओं से सहयोग लेती हैं।