Friday, March 29, 2024
spot_img
spot_img
spot_img
03
Krishan
previous arrow
next arrow
Shadow
Homeराष्ट्रीयअंतिम संस्कार की तैयारियों के बीच जिंदा हुआ सात साल का मासूम,...

अंतिम संस्कार की तैयारियों के बीच जिंदा हुआ सात साल का मासूम, अस्पताल ने मृत समझ घर भेज दिया था

एफएनएन, बहादुरगढ़ :  जिस दहलीज पर मौत ने दस्तक दे दी थी, वहां पर जिंदगी के कदम वापस लौट आए। वाक्या किसी चमत्कार या फिल्मी पटकथा सा लगता है, मगर बहादुरगढ़ में ऐसा हकीकत में हुआ। यहां का एक परिवार अपने सात साल के बच्चे काे अस्पताल से मृत समझ घर ले आया था। उसके अंतिम संस्कार की तैयारी चल रही थीं, मगर उसके बाद जो हुआ, उसने परिवार की खुशी वापस लौटा दी। अंतिम संस्कार की तैयारियों के बीच अचानक बच्चे की सांसें वापस लौट आने की घटना पूरे क्षेत्र में चर्चा का विषय बनी हुई है।

मौत को मात देकर, जिंदा होने वाले सात साल के इस मासूम का परिवार बहादुरगढ़ के किला मुहल्ला का रहने वाला है। परिवार के मुखिया विजय कुमार शर्मा, राजू टेलर के नाम से मेन बाजार में कपड़ा सिलाई की दुकान चलाते हैं। उनका बेटा है हितेष भी इसी कपड़े की दुकान पर काम करता है। मौत को मात देने वाला बच्चा, हितेष का पुत्र कुनाल है। पिछले महीने कुनाल को बुखार आ गया था। जांच में टाइफायड पाॅजिटिव आया। दवा दिलाई मगर ठीक नहीं हुआ। 25 मई को कुनाल को दिल्ली के एक बड़े अस्पताल में भर्ती कराया गया। मगर हालत लगातार बिगड़ती चली गई। आखिर में उसकी सांस लगभग थम चुकी थी। डाक्टरों ने परिवार को बोला कि कुनाल को वेंटीलेटर पर रखना पड़ेगा, मगर कोई उम्मीद नहीं है। परिवार की भी आंखे भर आई थीं। बच्चे को मृत मानकर परिवार घर ले आया।

दिल्ली में ही दफनाने पर हो रहा था विचार

इसके बाद आगे जो हुआ, वह परिवार के मुखिया विजय कुमार से खुद जानिए – ‘हम अस्पताल से घर लौटे ही थे। मेरे पास हितेष का फोन आया कि कुनाल की जिंदगी आधे घंटे की बची है। हम हड़बड़ा गए। फिर आधे घंटे बाद फोन पर हितेष ने कहा कुनाल नहीं रहा। परिवार में चीख पुकार मच गई। देर शाम का वक्त था। हमने बर्फ का इंतजाम करना शुरू किया, क्योंकि रात भर मृत देह को बिना बर्फ कैसे रखते। मुहल्ले के लोग आ गए। मेरे एक रिश्तेदार का फोन आया कि इस वक्त बहादुरगढ़ के राम बाग श्मशान घाट में बच्चे का अंतिम संस्कार (दफनाने की क्रिया) हो सकेगा क्या। अगर वहां नही होगा तो दिल्ली में ही करना पड़ेगा। रात भर घर में रखने से पूरा परिवार और ज्यादा दुखी होगा।’

दादी की जिद से ऐसे मिली नई जिंदगी

विजय कुमार बताते हैं, ‘कुनाल को दिल्ली में दफनाने पर विचार हो रहा था, मगर बच्चे की दादी यानी मेरी पत्नी आशा रानी ने कहा कि मुझे अपने पौते का मुंह देखना है। उसे घर ले आओ। लिहाजा हम उसे एंबुलेंस से घर लेकर आ गए। जब एंबुलेंस से कुनाल को मेरे बड़े बेटे की पत्नी अन्नु शर्मा ने उठाया तो उसे कुछ धड़कन महसूस हुई। उसके इतना कहते ही हमने बच्चे को फर्श पर लिटाया और उसको मुंह से सांस देनी शुरू कर दी। मैंने और मेरे दोनों बेटों ने उसको खूब जोर-जोर से सांस दी। इतने में कुनाल के शरीर में हलचल शुरू हो गई। उसके दांत से हितेष का होंठ भी कट गया। खून निकल आया, लेकिन जैसे ही कुनाल के शरीर में हलचल हुई घर पर जमा लोगों ने भी जयकारे लगाने शुरू कर दिए। वहां मौजूद लोगों के आश्चर्य और खुशी का ठिकाना नहीं था।’

अस्पताल ने दोबारा दे दिया था जवाब

विजय कुमार के अनुसार लोग खुशी में तालियां बजाने लगे। फिर हम जिस एंबुलेंस में कुनाल को लेकर आए थे, उसी में लेकर शहर के एक निजी अस्पताल पहुंचे। वहां डॉक्टरों ने कहा कि बहुत देर हो चुकी है। बच्चे का बच पाना मुश्किल है। किसी बड़े अस्पताल लेकर जाओ। हमने कई जगह पता किया। रोहतक के एक निजी अस्पताल में बेड मिला। वहां पर इलाज शुरू हुआ, तो कुनाल ठीक हो गया। पिछले सोमवार (14 जून) को उसे अस्पताल से छुट्टी मिल गई।

‘पता नहीं भगवान ने कैसे जिंदगी की कड़ी जोड़ दी’

विजय कुमार कहते हैं कि ‘यह हमारे ऊपर भोलेनाथ की कृपा और चमत्कार ही था जो कुनाल वापस लौट आया। अगर मेरी पत्नी उसे जिद करके यहां लेकर आने को न कहती तो शायद दिल्ली में ही क्रिया हो जाती। मेरे बेटे की पत्नी उसे सबसे पहले न उठाती और सीधे ही हम उसे बर्फ पर लिटा देते तो शायद वह कब का विदा हो गया होता। पता नहीं भगवान ने कैसे जिंदगी की कड़ी जोड़ दी।’

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

CommentLuv badge

Most Popular

Recent Comments