लालसा टिकट की—-
कंचन वर्मा, रुद्रपुर : राजनीति जो न कराए थोड़ा है। अब कांग्रेस के टिकट का सपना संजोए ऊधमसिंह नगर के कुछ नेताओं को ही ले लें ! कल तक हरीश रावत के मुख्यमंत्री रहते उनके इर्द-गिर्द मंडराने वाले ये नेता अब इंदिरा ह्रदयेश के राग दरबारी बन गए हैं। भविष्य में इनको फायदा मिलेगा या नुकसान, यह तो अलग की बात है लेकिन आजकल इन नेताओं को हल्द्वानी की दौड़ लगाते हुए अक्सर देखा जा सकता है। इनमें एक किच्छा से दावेदारी ठोक रहे हैं तो दूसरे रुद्रपुर से।
राजनीति जिस क्षेत्र में भी घुस जाए, उसे बर्बाद होते देर नहीं लगती। राजनीतिज्ञों में राजनीति भी आम है, जो हर पार्टी में देखने को मिलती है। उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस इसका जीता जागता उदाहरण है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत अलग राग अलाप रहे हैं तो नेता प्रतिपक्ष खुलेआम उन पर हमला करती हुई नजर आती हैं। प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह की बात करें या पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय की, सभी धड़ो में बटे हुए हैं। अब चुनाव निकट है तो दावेदार अपना पौआ भारी करने में जुट गए हैं। पूर्व स्वास्थ्य मंत्री तिलक राज बेहड़ ने किच्छा से चुनाव लड़ने की घोषणा क्या की, उनकी ही पार्टी के नेताओं ने तेवर दिखाने शुरू कर दिए। यहां तक कह डाला कि भला वह अपनी पकी पकाई फसल किसी और को कैसे काट लेने देंगे। विरोध के बीच इनमें से एक नेता आजकल हल्द्वानी की दौड़ लगाते हुए नजर आ रहे हैं। यह वही नेता हैं जो हरीश रावत के मुख्यमंत्री रहते उनके इर्द-गिर्द डोला करते थे। वहीं रुद्रपुर से दावेदारी कर रहे एक नेता जी भी आजकल सौरभ होटल के इर्द-गिर्द घूमते देखे जा सकते हैं। सूत्रों की मानें तो इन्हें आश्वासन भी मिल गया है, शायद इसीलिए उनके नाम के होल्डिंग से शहर पटा पड़ा है। हरीश रावत का इन नेताओं की जुबान पर नाम इसलिए नहीं कि हल्द्वानी से समीकरण न बिगड़ जाएं। इन नेताओं को भविष्य में कितना फायदा मिलेगा यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन राजनीति के रंग भी अजीब हैं या यूं कहें कि दावेदार थाली के बैंगन की तरह हैं जिधर पड़ला भारी, उधर की ही सवारी। खैर, परिपक्व नेताओं की जमात में नेता प्रतिपक्ष इंदिरा ह्रदयेश का नाम ऊपर है तो वह भी किसी को निराश करना नहीं चाहेंगी, पर टिकट तो उसेेेे ही मिलना जो चुनाव जीत सके।