चेहरा कैसा भी हो, नजरों में रहना चाहिए, शायद इसीलिए देहरादून में मुख्यमंत्री के सामने बड़े-बड़ों के साथ छुटभैये भी डटे रहे, धक्के खाकर भी नहीं हिले। नई सेल्फी नहीं मिली तो धूल फांक रही पुरानी ही चल पड़ी, भले ही सेल्फी में दिख रहे फूल अब गंधिया गए थे। शुभकामनाओं के जरिए मंशा शायद यही दिखाने की थी कि हम भी कुछ कम नहीं। बात नए-नयों की थी, अब वह तीरथ हो या त्रिवेंद्र, बंशीधर हो या मदन कौशिक। फेसबुक भी कराह उठा। दोनों नेताओं से कितने करीबी दिली रिश्ते हैं, इसका एहसास आज तक कराया जा रहा है, यह बात दीगर है कि दोनों नेता हमको पहचानते हैं भी या नहीं, लेकिन राजनीति करनी है तो ‘ ताकत ‘ तो दिखानी ही होगी, सेल्फी के जरिए ही सही। मुख्यमंत्री की नजर पड़ जाए तो क्या कहने ‘ गधे को भी पहलवान ‘ होते देर नहीं लगेगी। खैर जो भी हो पर जूम करके मुख्यमंत्री हो या प्रदेश अध्यक्ष, फेसबुक पर फोटो दिखाने का अपना अलग ही मजा है। एक चाय वाले ने भी ऐसे ही किया। हमने उससे पूछ लिया तो बोला, भला जब एक चाय वाला देश का प्रधानमंत्री हो सकता है तो विधायक क्यों नहीं, हो सकता है इस चुनाव में हमारी लॉटरी लग जाए। उसकी बातों को सुनना और मानना हमारी मजबूरी भी थी क्योंकि घूरे के दिन पलटते देर नहीं लगती। अब बात देश की हो, प्रदेश की या फिर जिले की।
कंचन वर्मा