एफएनएन, रुद्रपुर: उत्तराखंड के जानेमानमे रंगकर्मी और अभिनेता सुरेंद्र भंडारी की भी कोरोना से जान चली गई। उनके निधन से उत्तराखंड के सांस्कृतिक कर्मियों में शोक की लहर है। सुरेंद्र भंडारी के निधन पर दून के रंगकर्मियों ने कहा कि हमने एक बड़े कलाकार को खो दिया है।
सुरेंद्र भंडारी करीब एक साल पहले ही दून अस्पताल से फार्मेसिस्ट के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। उनकी रंगयात्रा काफी लंबी है। वह नाट्य संस्था अभिरंग, वातायन से भी जुड़े रहे। उन्होंने रंगर्मी मुकेश धस्माना के साथ मिलकर युवमंच का गठन भी किया था। वह नाटकों की स्क्रिप्ट लिखते थे और नाटकों का कुशल निर्देशन भी करते थे। यही नहीं वह बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। पर पेंटिंग करते थे। बताते हैं कि नगक सत्यागृह नाटक में उन्होंने बड़े पर्दे को अपने हाथों से डिजाइन किया। वहीं, रूपसज्जा से लेकर मंच सज्जा तक उन्हें महारथ हासिल थी। या यूं कहें कि वे अपने आप में नाट्य विधा की एक पाठशाला थे।
हाल ही में भंडारी कोरोना संक्रमित हो गए थे। वह देहरादून में विधानसभा के निकट फ्रेंड्स कालोनी गोरखपुर में रहते थे। पिछले 15 दिनों से वह कर्जन रोड स्थित अस्पताल में भर्ती थे। जहां 6/7 मई की रात करीब एक बजे उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान सुरेंद्र भंडारी ने उत्तराखंड सांस्कृतिक मोर्चा में सक्रिय और बढ़चढ़कर प्रतिभाग किया। इस दौरान मंचित किए गए नुक्कड़ नाटक -केंद्र से छुड़ाना है, को भी सुरेंद्र भंडारी ने ही लिखा।
उत्तराखंड कांग्रेस के उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने अपनी फेसबुक वाल में सुरेंद्र भंडारी के निधन की सूचा देते हुए बताया कि सुरेंद्र भंडारी एक नाम जो देहरादून के रंगमंच और गढ़वाली फ़िल्म “कभी सुख कभी दुख” में अभिनय व “मेरी प्यारी बोई” में निर्देशन में हमेशा याद किया जाएगा। बेगम का तकिया, अंधा युग, डेथ इन इन्स्टालमेन्ट, काफी हाउस में इंतज़ार, रागदरबारी, खौफ की परछाइयां जैसे नाटकों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। बड़ी बुआ जी में अनाथ की भूमिका में बहुत प्रशंसा बटोरी थी। सुरेंद्र भाई हमारे बड़े भाई जैसे थे, मेरे दोनों बड़े भाइयों डॉक्टर श्रीकांत धस्माना के सहपाठी व मुकेश भाई के अभिन्न मित्र व रंगमंच और फिल्मों में साथी। उनको खो कर अत्यंत पीड़ा का अनुभव हो रहा है। विनम्र श्रद्धांजलि।
रंगकर्मी सतीश धौलखंडी बताते हैं कि सुरेंद्र भंडारी ने कई टीवी सीरियर में भी काम किया। साथ ही कई फिल्मों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने बताया कि दूरदर्शन में प्रसारित होने वाले काश सीरियल में उन्होंने आतंकवादी की भूमिका निभाई। पतली दुबली कदकाठी का होने के बावजूद उन्होंने एक खूंखार आतंकवादी का दमदार अभिनय किया।
रंगकर्मी गजेंद्र वर्मा बताते हैं कि सुरेन्द्र भंडारी को मेंने एक बच्चे की तरह बढ़ते हुए देखा है। कच्चे-पक्के काम करते हुए उसने रंग मंच में अपनी जगह बना ली थी। उसकी इन्ट्री एक्टर के रूप में हुई थी। इस रूप में वो बम्बई तक हो आया। छोटे बड़े सभी पर्दे में दिखाई दिया। अच्छा पेन्टर था। नाटक नमक सत्याग्रह का पर्दा उसी की कला का नमूना था। कुछ अच्छे नाटक क निर्देशित किये। बैस्ट मेकअप मैन था। वो सबका दोस्त था सबका मददगार था। भंडारी तू जिन्दा दिल था, हमारे दिलों में हमेशा जिन्दा रहेगा। सादर नमन.