- कांग्रेस से भाजपा में आए नौ में से कई विधायक खुद को हाशिय पर पड़ा देख रहे हैं
गणेश पथिक
पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में काफी कुछ.ठीक नहीं चल रहा है। सत्तारूढ़ भाजपा के कई विधायक सदन से सड़क तक विभिन्न मुद्दों-मसलहों को लेकर अपनी ही सरकार के खिलाफ मैदान में ताल ठोंक रहे हैं तो कमजोर विपक्ष की अगुआई कर रही मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस भी यहां पार्टी आलाकमान के नहीं, बल्कि सच पूछिए तो राज्य में खुले तीन दरबारों के इशारों पर ही चलती है। इन तीनों दरबारों के मुखिया में से किसी को भी दूसरे का दखल हरगिज़ मंजूर नहीं है।
नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा हृदयेश के भाजपा में बड़ी टूट की संभावना के हालिया बयान पर उत्तराखंड में सत्तारूढ़ पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत ने पलटवार करते हुए कांग्रेस नेत्री को पहले अपनी पार्टी के डूबते जहाज को बचाने की सलाह देकर जहां एक तरफ करारा सियासी हमला बोला है; वहीं भाजपा में बढ़ते असंतुष्ट विधायकों के आंकड़े को भी बयान की आड़ में छुपाने की ही चतुराई भरी कोशिश की है।
चर्चा है कि मलाईदार पदों की चाहत में कुछ साल पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए नौ विधायकों में से कई लंबे अरसे से हाशिये पर पड़े हुए हैं और उनमें मौजूूूदा त्रिवेंद्र सरकार की कार्यशैली को लेकर सख्त नाराजगी भी अक्सर दिख भी जाती रही है। खानपुर (हरिद्वार) की अपनी परंपरागत विधानसभा सीट पर वर्ष 2012 में कांग्रेस से जीते कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन साल 2014 में बंदूक संग डांस कर ताबड़तोड़ तीन फायर कर मीडिया की सुर्खियों में छाए तो कांग्रेस को मजबूरन उन्हें छह साल के पार्टी की प्राथमिक सदस्यता तक से हाथ धोना पड़ा था। 2017 में भाजपा के टिकट पर खानपुर से जीतकर दुबारा विधायक तो बन गए लेकिन भगवां पार्टी में आने पर भी बंदूक-तमंचे पर डिस्को और सरेआम गालीगलौज करने की लत छूट नहीं सकी और जब-तब भाजपा की फजीहत कराते ही रहे।आखिरकार भाजपा हाईकमान को भी सख्त निर्णय लेते हुए एक नहीं, दो बार चैंपियन को पार्टी से निलंबित करना पड़ा। अगस्त 2020 में बिना शर्त माफी मांगने पर वापसी हो पाई है लेकिन सरकार या संगठन में तवज्जो न मिलने पर जाहिर तौर पर बेहद मायूस तो हैं ही।
ल़ोहाघाट भाजपा विधायक पूरनसिंह फर्त्याल तो रोड निर्माण में बड़े घोटाले का इल्जाम लगाते हुए अपनी ही सरकार के खिलाफ बागी तेवर दिखाते हुए हालिया विधानसभा सत्र में जांच की मांग को लेकर कार्य स्थगन प्रस्ताव तक सदन में रखने की कोशिश कर चुके हैं। कांग्रेस से भाजपा में आए कथित असंतुष्टों का बढ़ता हुआ यह आंकड़ा किसी भी वक्त कोई चमत्कार कर दिखाए तो ज्यादा हैरत नहीं होनी चाहिए।
इसी क्रम में काशीपुर (ऊधमसिंह नगर) के भाजपा विधायक हरभजन चीमा को भी देखा जाना चाहिए जो पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय की 1072 एकड़ भूमि प्रस्तावित ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट के निर्माण के वास्ते अधिग्रहीत कर लेने के अपनी ही सरकार के फैसले के विरुद्ध इन दिनों काफी मुखर हैं और त्रिवेंद्र रावत सरकार के फैसले को किसान-खेती के खिलाफ ठहराते हुए मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस की हां में हां मिलाने में भी कतई संकोच नहीं कर रहे हैं।
मत भूलिए कि पखवाड़े भर पहले रुद्रपुर में आयोजित मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की किसान सम्मान रैली से भी काशीपुर विधायक हरभजनसिंह चीमा ने किसानों की नाराजगी? या अपने हितों ? को भांपते हुए जानबूझकर दूरी बना ली थी और बड़े भाजपा नेताओं की मान-मनौव्वल को ठुकराते हुए रैली में शामिल नहीं ही हुए थे। उत्तराखंड भवन सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड चेयरमैन पद से हटाए जाने के बाद से कांग्रेस से भाजपा में आए वन मंत्री हरकसिंह रावत भी अपनी ही सरकार के खिलाफ पिछले काफी वक्त से मुंह फुलाए बैठे हैं। गाहे-बगाहे सरकार पर तीखी छींटाकशी के जरिये उनका यह ‘असंतोष’ सब्र के पैमाने से छलक भी पड़ता रहा है।
वैसे उत्तराखंड कांग्रेस भी काफी समय से तीन खेमों में बंटी हुई है। एक ताकतवर गुट पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का फरमाबरदार है तो दूसरा बड़ा खेमा विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा हृदयेश का कट्टर समर्थक है, तीसरा गुट कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह के साथ मजबूती से डटा दिखता रहा है। तीनों गुट अपने-अपने नेताओं को ही असल पार्टी आलाकमान का दरजा देते रहे हैं। सिर्फ इतना ही नहीं, एक-दूसरे गुट को नीचा दिखाने के वास्ते तीनों गुट धुर विपक्षी पार्टी के रूप में भी खुद को ढालने से चूकने वाले हरगिज नहीं हैं।
सुबूत के तौर पर दो महीने पहले का वह बयान याद कीजिये जब नेता प्रतिपक्ष डॉ. (श्रीमती) हृदयेश की तर्ज पर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी भाजपा में बड़ी टूट की संभावना जताते हुए बड़ा बयान दिया था कि त्रिवेंद्र रावत सरकार की कार्यशैली से बेतरह खफा कई भाजपा विधायक बहुत जल्द कांग्रेस में शामिल होने वाले हैं लेकिन उस वक्त ‘हरदा’ का समर्थन, स्वागत करने के बजाय तेजतर्रार कार्यशैली के लिए पहचानी जाने वाली डॉ. हृदयेश ने दो-टूक कह दिया था कि किसी को पार्टी में शामिल करने या नहीं करने का हक ‘हरदा’ को बिल्कुल भी नहीं है। यह अधिकार तो कांग्रेस आलाकमान का है कि किसे पार्टी में शामिल किया जाय और किसे नहीं?
लेकिन, अब खुद डॉ. हृदयेश ‘हरदा’ की ही लीक पर चलकर बिल्कुल वैसा ही बयान दे रही हैं। वैसे सियासत के बेहद मंझे हुए महारथी ‘हरदा’ ने अंदरखाने जहर का सा घूंट गले से उतारने के बावजूद मौके की नजाकत को भांपते हुए कंटीली मुस्कान के पीछे अपना मुंह बंद ही रखा है। उल्टे इस मीठी टिप्पणी से राजनीति के पंडितों को भी एक मर्तबा फिर अपना कायल बना लिया है कि भाजपा में टूट कराने वाले को वे खुद अपने हाथों से फूलमालाएं पहनाकर सार्वजनिक रूप से जरूर सम्मानित करेंगे।