- – रजिस्ट्री कार्यालय भी संदेह के दायरे में, नगर निगम प्रशासन की भी लापरवाही उजागर
- – हाल ही में भाजपा के पदाधिकारी बने एक नेता का खेल आ रहा है सामने
एफएनएन, रुद्रपुर : कस्टोडियन की भूमिका निभा रहा नगर निगम नजूल भूमि को बचाने के नाम पर खेल खेल रहा है। डीएम के आदेश पर रोक के बाद भी अगर नजूल भूमि पर एक नहीं 57 रजिस्ट्रीकर दी जाती हैं तो इसके लिए सीधे तौर पर जिम्मेदारी भी तय करनी होगी ? हम बात कर रहे हैं शैलजा फॉर्म की उस भूमि की जिसमें गलत रिपोर्ट देने वाले अधिकारियों के खिलाफ तत्कालीन डीएम गोपाल कृष्ण द्विवेदी के आदेश पर कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज हुई थी, बावजूद खेला होवे का खेल जारी है।
सूचना अधिकार ने जिम्मेदार विभागों की कलई खोल कर रख दी है। दरअसल, कल्याणी व्यू नदी कॉलोनी के रहने वाले विजय वाजपेई की ओर से सूचना अधिकार में यह जानकारी प्राप्त की गई है। बात गंगापुर रोड स्थित शैलजा फॉर्म की खसरा नंबर 66, 67, 69 व 70 मिन में दर्ज 10 एकड़ जमीन की हो रही है। इस जमीन को खेड़ा की रहने वाली जीवंती शाह को 15 अप्रैल 1986 को 30 साल के लिए जिले के प्रशासन ने खेती के लिए दिया था। इसमें 6 एकड़ भूमि 30 नवंबर 1991 को सर्किल रेट के आधार पर 7 फीसद आवेदक के पक्ष में फ्री होल्ड करने की स्वीकृति प्रदान कर दी गई। आवेदक को एक करोड़ 81 लाख 61 हजार रुपए जमा करने थे, मगर वह जमा नहीं कर सके।
आवेदक ने 7 अगस्त 1999 को सर्किल रेट का पुनः मूल्यांकन करने की मांग की। जांच हुई तो पता लगा की फ्रीहोल्ड में प्रस्तावित भूखण्ड की उत्तर दिशा में नदी है, लेकिन वर्तमान में मौके पर मास्टर प्लान के मानचित्र के अनुरूप नदी अपने मूल रूप में नहीं पाई गई। नदी को पाटकर खेती की जा रही थी। तत्कालीन कलेक्टर व प्रभारी अधिकारी की संयुक्त रिपोर्ट के आधार पर 21 मई 2000 में बताया गया कि संदर्भित पट्टे का कुल क्षेत्रफल 10 एकड़ है। भूमि के उत्तर में पट्टे में नाला प्रदर्शित किया गया। इस नाले को शामिल करते हुए मौके पर 14.7 एकड़ भूमि पर पट्टेदार का कब्जा पाया गया। पोल खुली तो पट्टेदार ने 4.97 एकड़ भूमि का फ्रीहोल्ड कराने के लिए आवेदन किया। यहीं मामला पकड़ में आ गया। तत्कालीन डीएम गोपाल कृष्ण द्विवेदी ने वर्ष 2006 में मामले की जांच करा दी। जांच में पाया गया कि भूमि गलत तरीके से फ्री होल्ड की गई है। इस पर डीएम ने 12 सितंबर 2006 को एक सार्वजनिक सूचना जारी कर राजस्व ग्राम रुद्रपुर के खसरा नंबर 66, 67, 69 व 70 मिन का स्वामित्व फ्रीहोल्ड संबंधित प्रकरण विवादित बताया।
बावजूद इसके इस विवादित भूमि पर 57 रजिस्ट्रियां कर दिया जाना सवाल उठाता है। सवाल यह भी है कि नगर निगम जब केयर टेकर की भूमिका में है तो इन जमीनों की रक्षा क्यों नहीं कर पा रहा? क्या भू माफियाओं को उसका संरक्षण प्राप्त है? और फिर जब डीएम ने खुद इस मामले में रिपोर्ट दर्ज कराई है तो फिर कैसे रजिस्ट्री हो गईं। ऐसे में रजिस्ट्री कार्यालय पर भी सवाल उठना लाजमी है। क्रमश: …..